
schizophrenia, सीजोफ्रेनिया
विस्तार
मेट्रो शहरों में बढ़ रही तनाव भरी जिंदगी, बदलती जीवन शैली व अन्य कारणों से दिमाग पर बोझ बढ़ रहा है। इससे पीड़ित लोगों में तेजी से मनोविकार की समस्याएं देखने को मिल रही हैं। ये लोग काल्पनिक और वास्तविक बातों के बीच अंतर नहीं कर पाते। अक्सर अकेले में बात करते हुए दिख जाते हैं। इन्हें लगता है कि कोई इन्हें नीचा दिखाने का प्रयास कर रहा है। यह अपने आप में खोए रहते हैं। ऐसे मनोरोगियों में सिजोफ्रेनिया नामक रोग तेजी से बढ़ रहे हैं।
दिल्ली स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल के मनोरोग विभाग में तीस फीसदी मरीजों में इस रोग के लक्षण मिल रहे हैं। कोविड से पहले यह आंकड़ा 10-20 फीसदी के करीब होता था। वहीं, दूसरे अस्पतालों में भी कुछ ऐसा ही हाल है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो दुनिया में हर साल करीब 11 लाख मरीज मिल रहे हैं। देश में करीब 0.8 फीसदी लोगों में सिजोफ्रेनिया के लक्षण हैं। डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में चल रहा है।
मरीज पेशे से आईटी इंजीनियर है, सालाना 20 लाख का पैकेज लेने वाले इस मरीज का पूरा परिवार उसी पर निर्भर है। यह मरीज जबतक दवाइयां लेता है, तो ठीक रहता है। दवाइयां छोड़ देने के बाद समस्या बढ़ जाती है। हालात यह है कि पिछले दो साल में उसे अस्पताल में दो बार भर्ती करना पड़ गया। ऑफिस में उसके व्यवहार को देखते हुए दो बार कंपनी से भी निकाल दिया गया। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे मरीजों पर विशेष नजर रखने की जरूरत होती है।
30 फीसदी तक मिल रहे मरीज
डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मनोरोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. लोकेश शेखावत ने बताया कि अस्पताल में हर साल करीब सात हजार मरीज उपचार के लिए आते हैं। इनमें से करीब 30 फीसदी मरीजों में सिजोफ्रेनिया के लक्षण दिखते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे मरीज का उपचार संभव है, लेकिन दवाइयां लंबी चलती है। यदि मरीज बीच में दवा छोड़ देता है तो वह फिर से पीड़ित हो जाएगा।
बीमारी का इलाज
सिजोफ्रेनिया का इलाज लंबा चलता है। यदि किसी मरीज में इसके लक्षण दिखाई देते हैं तो उन्हें डॉक्टर के संपर्क कर तुरंत उपचार शुरू कर देना चाहिए। सिजोफ्रेनिया के उपचार में दवाइयां कारगर है, लेकिन मरीज को एक-दो साल तक दवाइयां लेनी होती है।
सिजोफ्रेनिया के लक्षण
- काल्पनिक और वास्तविक बातों के बीच नहीं कर पाता अंतर, व्यक्ति को हमेशा लगता है कि सभी उसके खिलाफ है।
- संयोग के अनुभव को अपनी घटना से लेता है जोड़, मरीज को लगता है कि उसके साथी का किसी और के साथ है संबंध, मरीज को हमेशा कोई आवाज सुनाई देती है जो वास्तविकता में नहीं।
किन्हें हो सकता है रोग
- अनुवांशिकता, माता-पिता से होने की संभावना 40 फीसदी तक
- जीवन शैली में तनाव व अन्य कारण
- दिमागी में रसायनिक असंतुलन
- धूम्रपान व नशा

Author: raftarhindustanki



